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378 th Day Of Battle – Veera Ki Shapath – Arun Kumar

378 th Day Of Battle – Veera Ki Shapath – Arun Kumar

बुक लॉन्च का 378वां दिन 🙂

कठिन सफ़र खुबसूरत यादों से भरा होता है। मैं एक ऐसे सफ़र पर हूं जहां ये नहीं पता की कब किस गली किस शहर में रहूंगा। हमारा सफ़र उम्मीद का दामन थामकर पुरी तरह से समय की हथेली में नृत्य कर रहा है। डर, भय, रोमांच और अनिश्चितताओं से भरा हमारा सफ़र अब हमारे हाथ में नहीं रहा। हमारा सफर पूरी तरह से समय के अधीन हो चला है। तमाम बाधाओं और कई रुकावटों के बीच दिल में कहीं से एक आवाज आती है की……

राह जो राह दिखाए, उस राह पर चलना है तुम्हें।
डर, प्रेरणा, प्रेम; हर युद्ध रीत में ढलना है तुम्हें।।

वक्त जलाए तो जलना है, वक्त पिघलाए तो पिघलना है तुम्हें।
वक्त गिराए तो गिरना है, वक्त संभाले तो संभलना है तुम्हें।।

समय के साथ चलना दूभर होता जाएगा,
पर अंगारों पर निरंतर चलना है तुम्हें।।

अपना सफ़र जारी रखते हुए दस दिन से हम ज्ञान की धरती नालंदा,बिहारशरीफ में थे। तबियत ठीक नहीं होने के कारण दस दिनों में मात्र पांच दिन ही काम कर पाए। बिहारशरीफ के लोगों की तरफ़ से बेइंतहां प्यार मिला। बिहार की राजधानी पटना से अस्सी किलोमीटर दूर बसा बिहारशरीफ, एक ग्रामीण इलाका है। पर इसकी मिट्टी में आज भी प्यार बसता है। हमारा युद्ध देखकर, और हमारी कहानी जानने के बाद कई लोगों ने हमें अपने घर पर रुकने को आग्रह किया। हमारे टेबल के पास कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी। कोई न कोई हर वक्त ही हमारे साथ रहे। हर किसी ने अपने अपने तरीके से प्यार का तोहफा दिया। कोई कभी हमारा पोस्टर लेकर घंटों खड़ा हो जाता तो कोई पानी की बोतल और नाश्ता लेकर खड़ा रहता। मेरे सपोर्ट में पुलिस के कई लोग दिन भर मेरे इर्द गिर्द आते जाते रहे की कहीं कोई तकलीफ तो नहीं। मीडिया की तरफ़ से भी भरपूर प्यार मिला, उन्होंने मेरी कहानी को जन जन तक पहुंचाने में मेरी भरपूर मदद की। ऐसा लग रहा था मानों समय कहीं मेरी कहानी लिख रहा है और मैं उस कहानी का एक किरदार हूं।

नफ़रत और धर्मिक उन्माद के इस कलयुगी दौर में परदेस में इतना मुहब्बत पाकर मन गदगद हो गया। मैं तो आज बस शुक्रिया बिहाशरीफ लिखने बैठा था, और स्याही की धार अपने आप बह चली। एक लेखक कवि शायर होकर भी मेरा दिल जानता है की किसी भाषा में ऐसा कोई शब्द नहीं जो किसी के मुहब्बत को बयां कर सके। शायद जितनी मुहब्बत मिली मैं उतना बयां नहीं कर सका। लेकिन मेरे दिल की गहराइयों में आप सबके द्वारा मिला प्यार हु ब हू जिंदा रहेगा। किताब तो 300 बिकी, पर शायद मैं कुदरत की अनमोल दौलत, प्यार को अर्जित करने में सफल रहा। ज्ञान की धरती नालंदा, बिहारशरीफ में मिली इसी मुहब्बत को मैं मशाल बनाऊंगा और बढ़ चलूंगा एक नए शहर की ओर, नए सफर की ओर।

अरुण कुमार ✍️

Buy this Book : Veera ki Sapath

Book : Veera Ki Shapat | Author : Arun Kumar

Read First Article by ARUN KUMAR : https://www.journalogi.com/2022/05/10/93rd-day-of-battle-and-1st-day-in-nawada-veera-ki-shapath-arun-kumar/

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